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मेष लग्न की कुंडली के दशम भाव में गुरु का फल

मेष राशि में मंगल-राहु की युति: प्रत्येक राशि पर प्रभाव

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मेष लग्न की कुंडली के तृतीय भाव में गुरु का फल

मिथुन लग्न में कारक ग्रह (शुभ-मित्र ग्रह)

कर्क लग्न की कुंडली के द्वितीय भाव में राहु, शत्रु सूर्य की राशि में स्थित होने के कारण जातक को धन एवं कुटुंब के क्षेत्र में हानि होती है वह गुप्त युक्तियां तथा कठिन परिश्रम के बल पर धन की वृद्धि के लिए प्रयत्नशील रहता है और कभी-कभी आकस्मिक धन लाभ की प्राप्ति होती हैं उसे अपनी प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए सदैव चिंतित बने रहना पड़ता है ऐसा व्यक्ति बड़ा परिश्रमी तथा हिम्मती होता है।

मिथुन राशि में चंद्रमा वाले लोगों का सकारात्मक लक्षण

कर्क लग्न की कुंडली के प्रथम भाव में राहु, शत्रु चंद्रमा की राशि में स्थित होने के कारण जातक को शारीरिक सौंदर्य में कमी रहती है तथा ह्रदय चिंतित बना रहता है कभी-कभी मृत्यु तुल्य कष्ट का सामना भी करना पड़ता है परंतु वह गुप्त युक्तियों के बल पर अपने सम्मान को बचाए रखता है तथा उन्नति के लिए कठिन परिश्रम भी करता है।

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शनि देव इस कुंडली में आठवें और नौवें भाव के स्वामी हैं। कुम्भ जो शनि देव की मूल त्रिकोण राशि है वह इस कुंडली के मूल त्रिकोण भावों में आती है। शनि देव लग्नेश बुध के अति मित्र हैं। इन कारणों से शनि देव इस लग्न कुंडली में योग कारक हैं।

वृषभ लग्न की कुंडली के दशम भाव में चंद्रमा अपने शत्रु शनि की राशि में होने के कारण जातक को अपने पिता से थोड़ा मतभेद रहता है तथा राज्य के क्षेत्र में अधिक परिश्रम करना पड़ता है भाई बहन का सुख भी मिलता है तथा पराक्रम में भी वृद्धि होती है यहां स्थित चंद्रमा की सातवीं मित्र दृष्टि से चतुर्थ भाव को देखने के कारण जातक को माता भूमि भवन तथा पारिवारिक सुख यथेष्ट मात्रा में मिलता है

मेष लग्न की कुंडली के प्रथम भाव में शुक्र का फल

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